📅 Published on: 3 March 2025
105 days ago
story

कोई शाम हो जिसमें मैं तुमसे मिलने आया।

मौसम सर्दी के जाने के बाद वाला था। ठंड पूरी तरह गई नहीं थी, और नए फूल भी अभी पूरी तरह खिले नहीं थे। शाम का सूरज किसी खूबसूरत ड्रॉइंग जैसा लग रहा था, और हवा हल्की चल रही थी।

मैंने तुम्हें एक कैफे पर बुलाया था।
वो बनारस के घाट के पास था, जहाँ से पानी की आवाज़ें साफ़ सुनाई देती थीं। घाट के किनारे हवा चल रही थी। मैं एक शॉल ओढ़कर बैठा हुआ था। मेरे पास मानव कौल की किताब “तितली” थी और साथ में चाय।

तुम आने वाली थी।
मैं किताब पढ़ते हुए सोच रहा था कि जब तुम आओगी, तो सबसे पहले क्या कहूँगा।
“आने में कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई?”
या
“चाय लोगी?”

तभी कैफे का दरवाज़ा खुला।
दरवाज़े से बंधी घंटी की हल्की आवाज़ सुनाई दी।
मेरा दिल अचानक तेज़ी से धड़कने लगा।
मैंने किताब बंद की और पीछे मुड़कर देखा।

तुम हल्के नीले सूट में थी।
अपने कोट को हाथ में पकड़े हुए।
एक हाथ खाली, शायद इसीलिए कि आते ही मुझे हेलो कर सको।
तुमने हाथ उठाया, और मैं खड़ा हो गया।
मेरे पैर कांप रहे थे।
ज़ुबान पर वे सारे शब्द थे, जो इतने समय से सोच रहा था।
लेकिन कुछ भी कहने का साहस नहीं हुआ।

तुम्हारी आँखें साफ़-साफ़ चमक रही थीं।
तुमने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा,
“अब बैठ जाओ।”
फिर मुस्कुराते हुए कहा,
“कितनी सुंदर जगह है। एक चाय ऑर्डर करें?”

मैं अब भी कुछ बोल नहीं पाया।
सिर्फ़ मुस्कुरा दिया।
हम दोनों ने चाय खत्म की, और बातचीत में थोड़ा खुलने लगे।

मैंने कहा,
“घाट घूमने चलोगी?”

तुमने तुरंत कहा,
“चलो!”

हम दोनों घाट की तरफ चल दिए।
रास्ते में बच्चे खेल रहे थे, और हवा में मंदिर की घंटियों की आवाज़ घुली हुई थी।
तुम थोड़ी आगे चल रही थी।
तुम्हारे बाल हल्की हवा में उड़ रहे थे।
मैंने तुम्हारे पीछे से झांकती तुम्हारी आँखों को देखा।

तभी मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ लिया।
तुमने मेरी तरफ देखा और हल्के से मुस्कुरा दी।
तुम्हारा हाथ ठंडा था, और उसमें एक अंगूठी थी।
अंगूठी की ठंडक से मुझे एहसास हुआ कि किसी का हाथ मेरे हाथ में है।
उससे पहले ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी फूल के गुलदस्ते को थामे हुए हूँ।

मैंने तुरंत कहा,
“नाव पर चलोगी?”

यह सुनकर तुमने दोनों हाथों से मेरे हाथ पकड़ लिए और कहा,
“मुझे डर लगता है।”
“तुम साथ रहना।”

मैंने कहा,
“मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”

हम नाव पर चढ़ गए।
तुम डरी हुई थी और मेरे बेहद करीब।
तुमने आसमान देखा, और मैंने तुम्हारे चेहरे की मुस्कान।
तुम डरते-डरते खुश हो रही थी।
जैसे-जैसे तुम्हारी खुशी बढ़ रही थी, तुम और ज़ोर से मेरा हाथ पकड़ रही थी।
मैंने अपनी उँगलियों को तुम्हारी उँगलियों में फँसा लिया।
तुमने मेरी तरफ देखा, और फिर मेरे कंधे पर सिर रखकर डूबते सूरज को देखने लगी।

धीरे-धीरे तुमने कहा,
“बहुत सुंदर है ये पल।”

और मुझे सुनाई दिया,
“बहुत सुंदर है ये साथ।”

रात होने वाली थी।
किनारे दीये जलाए जा रहे थे।
हमने नाव वाले से कहा,
“वापस चलिए।”

हम घाट पर वापस आ गए।
मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं।
तुमने हाथ जोड़े और कुछ बुदबुदाया।
शायद समय को थोड़ा और ठहरने की प्रार्थना की हो।

घाट से उतरते ही तुम हँस पड़ी।
“यह तो डरावना नहीं था।”
मैं भी हँस दिया।
हम घाट के पास की दुकान से चाय लेने चले गए।

अब तुम्हें जाना था।
घाट के बाहर आकर हम ऑटो का इंतज़ार करने लगे।
ऑटो आया, और तुमने मुझे गले लगाया।
मेरी साँसें थम गईं।
सब सुनाई देना बंद हो गया।
बस तुम्हारी खुशबू और तुम्हारे हाथों का एहसास बाकी था।

तुम ऑटो में बैठ गई।
तुमने “बाय” कहा।
मैंने जल्दी से तुम्हारे हाथ में अपनी किताब दे दी।
शायद मैं “बाय” नहीं कहना चाहता था।
मैं तुम्हें पढ़ना चाहता था।

मेरी अधूरी पढ़ी किताब अब तुम्हारे पास थी।
और शायद हमारा अधूरा मिलना भी।

जैसे-जैसे ऑटो मेरी नजरों से ओझल हुआ, मैं सोच रहा था—क्या यह आखिरी बार था?
या हमारे बीच की यह किताब कभी फिर से हमें जोड़ने आएगी?

मैं खड़ा रहा, ऑटो को जाते हुए देखता रहा।
चलना चाहता था, लेकिन कुछ दिख नहीं रहा था।
आँखें धुंधली हो गई थीं।
मैंने चश्मा हटाया, आँसू पोंछे, और हल्की मुस्कान दी।
फिर घाट की ओर बढ़ गया।


// Aakash

The End